प्रसव उपरान्त देखभाल
प्रसव के बाद नई माँ की देखभाल अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ये उस नारी का दुसरा जन्म होता है . इस वक़्त शरीर फिर गीली मिट्टी की तरह हो जाता है जिसे या तो मज़बूत बनाया जा सकता है या हमेशा के लिए कमज़ोर . इसी पर बच्चे का भविष्य भी टिका होता है .नई माँ की देखभाल के लिए आयुर्वेद से अच्छा और कुछ नहीं .
- पंसारी की दूकान में नवप्रसूता माँ को देने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ उपलब्ध होती है . कई जगह वे चूर्ण रूप में भी उपलब्ध हो जाती है . अन्यथा उन्हें सम भाग में ले क...र कूट पीसकर घी और पीसी मिश्री के साथ छोटी छोटी गोलियां बना ले और २१ दिन तक सुबह खाली पेट ले . इन दवाइयों में मुख्यतः सफ़ेद मुस्ली , काली मुस्ली , कमरकस , कायफल आदि होते है .
- सौंठ पावडर,हल्दी , बादाम और घी की गोलियां बना कर रोज़ एक गोली १२ दिन तक ले .
- कच्चे गोंद की पावडर बना कर उसे गर्म घी में डूबा कर रखे . इस के लड्डू कम से कम ७ दिन ले .
- तरह तरह की खीर का सेवन करे .
- मेथी पावडर से बने लड्डूओं का सेवन करे . इसमें कई पोषक वस्तुएं जैसे बादाम , खजूर , खोपरा , गोंद आदि डाला जा सकता है .
- आयुर्वेद के अनुसार जब भी कोई परिवर्तन होता है - मौसम , ज़िन्दगी जीने के ढंग या तापमान आदि का ; तब तब वात बढ़ता है . माँ बनना तो एक बहुत बड़ा परिवर्तन है ; तो वात भी उसी अनुरूप बहुत बढ़ जाता है . इसलिए ४० दिन तक हवा ना बहे ऐसे कमरे में रहे . कानों में रुई डाल कर रखे . सर भी कपडे से बाँध कर रखे . अन्यथा वात जन्य कई बीमारियाँ ज़िन्दगी भर के लिए पीछे पड़ जायेंगी .
- वात हरने के लिए घी का सेवन अत्यावश्यक है . इससे शुरू में ऐसा प्रतीत होगा की वजन बढ़ रहा है . पर अंत में वात का निस्तारण हो कर शरीर फूलेगा नहीं और वजन सामान्य हो जाएगा .हर बार घी की वस्तुओं के सेवन के बाद कुनकुना पानी या कोई भी द्रव्य ले .
- ४० दिन तक वात बढाने वाले भोजन का त्याग करे जैसे आइस क्रीम , चावल , बीन्स , गोभी , छोले आदि .
- मालिश से भी वात समाप्त होता है .
- भोजन के बाद पान , अजवाइन , सौंफ आदि का सेवन अवश्य करे .
- दशमूलारिष्ट का सेवन करे .
- कुछ हलके फुल्के योगासन शुरू किये जा सकते है .
- बच्चे को २ वर्ष की आयु तक माँ का दूध अवश्य दे . इससे बच्चे बुद्धिमान और तंदुरुस्त तो होते ही है ; माँ भी जल्दी स्वस्थ हो जाती है .इसके लिए घर का वातावरण भी अनुकूल होना चाहिए और माँ में भी आत्म विशवास होना चाहिए . शतावरी ,आलिव आदि औषधियां इसमें मदद करती है .
प्रसव के बाद नई माँ की देखभाल अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ये उस नारी का दुसरा जन्म होता है . इस वक़्त शरीर फिर गीली मिट्टी की तरह हो जाता है जिसे या तो मज़बूत बनाया जा सकता है या हमेशा के लिए कमज़ोर . इसी पर बच्चे का भविष्य भी टिका होता है .नई माँ की देखभाल के लिए आयुर्वेद से अच्छा और कुछ नहीं .
- पंसारी की दूकान में नवप्रसूता माँ को देने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ उपलब्ध होती है . कई जगह वे चूर्ण रूप में भी उपलब्ध हो जाती है . अन्यथा उन्हें सम भाग में ले क...र कूट पीसकर घी और पीसी मिश्री के साथ छोटी छोटी गोलियां बना ले और २१ दिन तक सुबह खाली पेट ले . इन दवाइयों में मुख्यतः सफ़ेद मुस्ली , काली मुस्ली , कमरकस , कायफल आदि होते है .
- सौंठ पावडर,हल्दी , बादाम और घी की गोलियां बना कर रोज़ एक गोली १२ दिन तक ले .
- कच्चे गोंद की पावडर बना कर उसे गर्म घी में डूबा कर रखे . इस के लड्डू कम से कम ७ दिन ले .
- तरह तरह की खीर का सेवन करे .
- मेथी पावडर से बने लड्डूओं का सेवन करे . इसमें कई पोषक वस्तुएं जैसे बादाम , खजूर , खोपरा , गोंद आदि डाला जा सकता है .
- आयुर्वेद के अनुसार जब भी कोई परिवर्तन होता है - मौसम , ज़िन्दगी जीने के ढंग या तापमान आदि का ; तब तब वात बढ़ता है . माँ बनना तो एक बहुत बड़ा परिवर्तन है ; तो वात भी उसी अनुरूप बहुत बढ़ जाता है . इसलिए ४० दिन तक हवा ना बहे ऐसे कमरे में रहे . कानों में रुई डाल कर रखे . सर भी कपडे से बाँध कर रखे . अन्यथा वात जन्य कई बीमारियाँ ज़िन्दगी भर के लिए पीछे पड़ जायेंगी .
- वात हरने के लिए घी का सेवन अत्यावश्यक है . इससे शुरू में ऐसा प्रतीत होगा की वजन बढ़ रहा है . पर अंत में वात का निस्तारण हो कर शरीर फूलेगा नहीं और वजन सामान्य हो जाएगा .हर बार घी की वस्तुओं के सेवन के बाद कुनकुना पानी या कोई भी द्रव्य ले .
- ४० दिन तक वात बढाने वाले भोजन का त्याग करे जैसे आइस क्रीम , चावल , बीन्स , गोभी , छोले आदि .
- मालिश से भी वात समाप्त होता है .
- भोजन के बाद पान , अजवाइन , सौंफ आदि का सेवन अवश्य करे .
- दशमूलारिष्ट का सेवन करे .
- कुछ हलके फुल्के योगासन शुरू किये जा सकते है .
- बच्चे को २ वर्ष की आयु तक माँ का दूध अवश्य दे . इससे बच्चे बुद्धिमान और तंदुरुस्त तो होते ही है ; माँ भी जल्दी स्वस्थ हो जाती है .इसके लिए घर का वातावरण भी अनुकूल होना चाहिए और माँ में भी आत्म विशवास होना चाहिए . शतावरी ,आलिव आदि औषधियां इसमें मदद करती है .
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