Saturday, September 13, 2014

NEEM FOOR ACNE/BOILS

फोड़े - फुन्सियाँ -GRIND NEEM LEAVES AND USE FOR ACNE TREATMENT AS PASTE OR USE ON BOILS TO GET IT NATURALLY EXCISED WITHOUT SCISSOR USE BY DOCTORS.

Greater cardamom.इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम)

Photo: इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम) -
                         बड़ी इलायची के फल एवं सुगन्धित कृष्ण वर्ण के बीजों से भला कौन अपरिचित हो सकता है | भारतीय रसोई में यह इस तरह से रची बसी है कि इसका प्रयोग मसालों से लेकर मिष्ठानों तक में किया जाता है |इसकी एक प्रजाति मोरंग इलायची भी होती है| यह पूर्वी हिमालय प्रदेश में विशेषतः नेपाल,पश्चिम बंगाल,सिक्किम,आसाम आदि में पायी जाती है | इसका छिलका मोटा तथा मटमैले रंग का धारीदार होता है | इसके बीज कृष्ण वर्ण के शर्करायुक्त गाढ़े गूदे के कारण आपस में चिपके हुए होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है | 
                         इसके बीजों में ग्लाइकोसाइड,सिनिओल,लिमोनीन,टर्पिनिओल,फ्लेवोनोन  आदि  रसायन तथा वाष्पशील तेल पाया जाता है | इसके तेल में सिनिओल की अधिकता पायी जाती है |   
                         आज हम आपको बड़ी इलायची के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- बड़ी इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है | 

२- बड़ी इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं | 

३- यदि दांत में दर्द हो रहा हो तो बड़ी इलायची और लौंग के तेल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीड़ायुक्त दांत पर लगाएं ,दर्द में शांति मिलेगी | 

४- यदि अधिक थूक या लार आती हो तो बड़ी इलायची और सुपारी को बराबर-बराबर पीसकर ,१-२ ग्राम की मात्रा में लेकर चूसते रहने से यह कष्ट दूर हो जाता है | 

५- पांच से दस बूँद बड़ी इलायची तेल में मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करने से दमा में लाभ होता है |

६- दो ग्राम सौंफ के साथ बड़ी इलायची के ८-१० बीजों का सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है | 

७- एक ग्राम बड़ी इलायची बीज चूर्ण को दस ग्राम बेलगिरी के साथ मिलाकर प्रातः सायं सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है | 

८- पिसी हुई राई के साथ बड़ी इलायची चूर्ण मिलाकर २-३ ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से लीवर सम्बंधित रोगों में लाभ होता है | 

९- एक से दो बड़ी इलायची के चूर्ण को दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से शरीर का दर्द ठीक होता है |इलायची बड़ी (ग्रेटर कार्डमम) -
बड़ी इलायची के फल एवं सुगन्धित कृष्ण वर्ण के बीजों से भला कौन अपरिचित हो सकता है | भारतीय रसोई में यह इस तरह से रची बसी है कि इसका प्रयोग मसालों से लेकर मिष्ठानों तक में किया जाता है |इसकी एक प्रजाति मोरंग इलायची भी होती है| यह पूर्वी हिमालय प्रदेश में विशेषतः नेपाल,पश्चिम बंगाल,सिक्किम,आसाम आदि में पायी जाती है | इसका छिलका मोटा तथा मटमैले रंग का धारीदार होता है | इसके बीज कृष्ण वर्ण के शर्करायुक्त गाढ़े गूदे के कारण आपस में चिपके हुए होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है |
इसके बीजों में

इकोसाइड,सिनिओल,लिमोनीन,टर्पिनिओल,फ्लेवोनोन आदि रसायन तथा वाष्पशील तेल पाया जाता है | इसके तेल में सिनिओल की अधिकता पायी जाती है |
आज हम आपको बड़ी इलायची के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -
१- बड़ी इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |
२- बड़ी इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं |
३- यदि दांत में दर्द हो रहा हो तो बड़ी इलायची और लौंग के तेल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर पीड़ायुक्त दांत पर लगाएं ,दर्द में शांति मिलेगी |
४- यदि अधिक थूक या लार आती हो तो बड़ी इलायची और सुपारी को बराबर-बराबर पीसकर ,१-२ ग्राम की मात्रा में लेकर चूसते रहने से यह कष्ट दूर हो जाता है |
५- पांच से दस बूँद बड़ी इलायची तेल में मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करने से दमा में लाभ होता है |
६- दो ग्राम सौंफ के साथ बड़ी इलायची के ८-१० बीजों का सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है |
७- एक ग्राम बड़ी इलायची बीज चूर्ण को दस ग्राम बेलगिरी के साथ मिलाकर प्रातः सायं सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है |
८- पिसी हुई राई के साथ बड़ी इलायची चूर्ण मिलाकर २-३ ग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से लीवर सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |
९- एक से दो बड़ी इलायची के चूर्ण को दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से शरीर का दर्द ठीक होता है |



जामुन [ Jambul Tree ]

Photo: जामुन  [ Jambul  Tree ]

जामुन के  सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं |  इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल  का रंग सफ़ेद-भूरा होता है |  इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 
         जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं | 
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली  ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है | 
२- जामुन के १०  मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम  सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है | 
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है | 
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं | 
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं । 
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है | 
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं | इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफ़ेद-भूरा होता है | इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 
जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं |
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है |
२- जामुन के १० मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है |
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है |
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं |
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं ।
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है |
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |

PILES

अर्श रोग [बवासीर ] Piles 
Photo: अर्श रोग  [बवासीर ]  Piles 
बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है | यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है -- खूनी बवासीर और बादी बवासीर | इस रोग के होने का मुख्य  कारण '' कोष्ठबद्धता '' या ''कब्ज़ '' है |  कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है | यदि मल के साथ बूंद -बूंद  कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी  बवासीर कहते हैं | अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है | 
                       बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -------

१- जीरा - एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है | 
२- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है | 
३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है | 
४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है |
५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है | 
६ - जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें | इसे पानी के साथ खाने से बवासीर [अर्श ] के दर्द में आराम रहता है | 
७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए | इससे बवासीर नष्ट हो जाती है |बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है | यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है -- खूनी बवासीर और बादी बवासीर | इस रोग के होने का मुख्य कारण '' कोष्ठबद्धता '' या ''कब्ज़ '' है | कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है | यदि मल के साथ बूंद -बूंद कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी बवासीर कहते हैं | अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है |
बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -------

१- जीरा - एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है |
२- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है |
३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है |
४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है |
५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है |
६ - जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें | इसे पानी के साथ खाने से बवासीर [अर्श ] के दर्द में आराम रहता है |
७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए | इससे बवासीर नष्ट हो जाती है |



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