Saturday, September 13, 2014

जामुन [ Jambul Tree ]

Photo: जामुन  [ Jambul  Tree ]

जामुन के  सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं |  इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल  का रंग सफ़ेद-भूरा होता है |  इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 
         जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं | 
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली  ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है | 
२- जामुन के १०  मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम  सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है | 
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है | 
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं | 
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं । 
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है | 
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |जामुन [ Jambul Tree ]

जामुन के सदाहरित वृक्ष जंगलों और सड़कों के किनारे सर्वत्र पाए जाते हैं | इसका पेड़ आम के पेड़ की तरह ही काफी बड़ा होता है | जामुन के पेड़ की छाल का रंग सफ़ेद-भूरा होता है | इसके पत्ते आम और मौलसिरी के पत्तों जैसे होते हैं | जामुन के फूल अप्रैल के महीने में लगते हैं और जुलाई से अगस्त तक जामुन पक जाते हैं | जामुन में लौह [ iron ] और phosphorus काफी मात्रा में होता है | 
जामुन मधुमेह , पथरी , लिवर ,तिल्ली और खून की गंदगी को दूर करता है | यह मूत्राशय में जमी पथरी को निकलता है | जामुन और उसके बीज पाचक और स्तम्भक होते हैं |
जामुन का विभिन्न रोगों में प्रयोग :-----
१- ३००- ५०० मिली ग्राम जामुन के सूखे बीज के चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है |
२- जामुन के १० मि.ली. रस में २५० मिली ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में २-३ बार कुछ दिनों तक निरंतर पीने से मूत्राशयगत पथरी नष्ट होती है |
३- जामुन के १०-१५ मि.ली. रस में २ चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , खून की कमी तथा रक्त विकार में लाभ होता है |
४- जामुन के पत्तों की राख को दांतों और मसूढ़ों पर मलने से दाँत और मसूढ़े मजबूत होते हैं |
५- जामुन के ५-६ पत्तों को पीसकर लगाने से घाव में से पस बाहर निकल जाती है तथा घाव स्वच्छ हो जाते हैं ।
६- तंग जूतों से पाँव में जख्म हो गए हों तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से लाभ होता है |
नोट :- जामुन का पका हुआ फल अधिक मात्र में सेवन करना हानिकारक हो सकता है , इसको नमक मिलाकर ही खाना चाहिए |

PILES

अर्श रोग [बवासीर ] Piles 
Photo: अर्श रोग  [बवासीर ]  Piles 
बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है | यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है -- खूनी बवासीर और बादी बवासीर | इस रोग के होने का मुख्य  कारण '' कोष्ठबद्धता '' या ''कब्ज़ '' है |  कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है | यदि मल के साथ बूंद -बूंद  कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी  बवासीर कहते हैं | अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है | 
                       बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -------

१- जीरा - एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है | 
२- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है | 
३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है | 
४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है |
५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है | 
६ - जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें | इसे पानी के साथ खाने से बवासीर [अर्श ] के दर्द में आराम रहता है | 
७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए | इससे बवासीर नष्ट हो जाती है |बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है | यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है -- खूनी बवासीर और बादी बवासीर | इस रोग के होने का मुख्य कारण '' कोष्ठबद्धता '' या ''कब्ज़ '' है | कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है | यदि मल के साथ बूंद -बूंद कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी बवासीर कहते हैं | अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है |
बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -------

१- जीरा - एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है |
२- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है |
३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है |
४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है |
५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है |
६ - जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें | इसे पानी के साथ खाने से बवासीर [अर्श ] के दर्द में आराम रहता है |
७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए | इससे बवासीर नष्ट हो जाती है |



MAKE OIL FOR ARTHRITIS

OIL FOR ARTHRITIS

use tamarind for sprain

मोच (Sprain) -

Blackness on lower eyelid-use potato juice

आँखों के काले घेरे -

Friday, July 4, 2014

त्रिफला,TRIFLA #AYURVED FOR HEALTH#INDIAN AYRVED

तीन साधारण चीजें, इन्हें मिलाकर खाने से कई भयानक रोग आसानी से दूर हो जाते हैंत्रिफला शरीर का कायाकल्प कर सकती है। त्रिफला का नियमित सेवन करने के बहुत फायदे हैं। स्वस्थ रहने के लिए त्रिफला चूर्ण महत्वपूर्ण है। त्रिफला सिर्फ कब्ज दूर करने ही नहीं बल्कि कमजोर शरीर को एनर्जी देने में भी उपयोग में लाया जा सकता है। इसके अलावा भी इसके बहुत सारे उपयोग है। 
कृमि की समस्या को खत्म करता है- कृमि की समस्या हो तो त्रिफला खाने से राहत मिलती है। यदि शरीर में रिंगवॉर्म या टेपवॉर्म हो जाते हैं तो भी त्रिफला कारगर है। त्रिफला, शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ावा देता है, जो कि किसी भी संक्रमण से लड़ने में सक्षम होती हैं।
सांस सबंधी समस्या में- त्रिफला, सांस संबंधी रोगों में लाभदायक होता है। इसके सेवन से सांस लेने में होने वाली असुविधा भी दूर हो जाती है।
 
कैंसर में भी है लाभदायक-  एक अध्ययन में पता चला है कि त्रिफला से कैंसर का इलाज संभव है। त्रिफला में एंटी - कैंसर गतिविधियां पाई गई है। इसकी मदद से शरीर की कैंसर कोशिकाओं के विकास को कम किया जा सकता है।
सिरदर्द में है असरदार इलाज- यदि किसी को सिरदर्द की समस्या ज्यादा रहती है तो उसे डॉक्टरी सलाह से त्रिफला का नियमित सेवन करना चाहिए। त्रिफला सिरदर्द को कम करने में मददगार है। सिरदर्द विशेष रूप से मेटाबॉलिक गड़बड़ी के कारण होता है। इसका सेवन करने से ये समस्या जड़ से खत्म हो जाती है।

डायबिटीज में है लाजवाब दवा-  डायबिटीज के उपचार में त्रिफला बहुत प्रभावी है। यह पेनक्रियाज को उत्तेजित करने में मदद करता है, जिससे इंसुलिन पैदा होता है। शरीर में इंसुलिन की उचित मात्रा शर्करा के स्तर को बनाए रखती है। इसका स्वाद बेहद कड़वा होता है।
तीन साधारण चीजें, इन्हें मिलाकर खाने से कई भयानक रोग आसानी से दूर हो जाते हैंपाचन की समस्या को करता है दूर- पाचन समस्याओं को दूर करने में त्रिफला सबसे कारगर दवा है। आंत से जुड़ी समस्याओं में भी त्रिफला खाने से काफी राहत मिलती है।

त्रिफला के सेवन से आंतों से पित्त रस निकलता है, जो पेट को उत्तेजित करता है और अपच की समस्या को दूर करता है। शरीर में जी. आई . ट्रेक्ट के पी एच लेवल को भी त्रिफला बनाए रखता है।
एनीमिया - खून की कमी हो जाने पर एनीमिया रोग लगता है। यह हीमोग्लोबिन की कमी के कारण होता है। हीमोग्लोबिन की मात्रा में कमी होने पर त्रिफला का सेवन फायदेमंद होता है। त्रिफला शरीर में रेड ब्लड सेल्स को बढ़ा देता है, जिससे एनीमिया की बीमारी दूर हो जाती है।
मोटापा कम कर देता है- जिन लोगों को कम उम्र में मोटापा परेशान कर रहा हो उनके लिए त्रिफला से बेहतर कोई दवा नहीं हैं। त्रिफला का नियमित सेवन करने से फैट कम होता है। यह सीधे फैट को ही घटाने का काम करता है।

स्किन प्रॉब्लम मिटाता है- किसी भी तरह की स्किन प्रॉब्लम होने पर त्रिफला काफी मददगार होता है। त्रिफला, बॉडी से जहरीले पदार्थों को बाहर निकाल देता है और खून को साफ कर देता है।
लंबी उम्र तक जवान बनाए रखता है- त्रिफला में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। जो कि सेल्स के मेटाबॉलिज्म को नियमित रखते हैं। साथ ही, उनकी प्रक्रिया को बनाएं रखते है।

त्रिफला से उम्र बढ़ाने वाले कारक भी कम होते है, इसीलिए इसके सेवन से उम्र कम दिखती है। यह शरीर की कई सेल्स को नियमित रूप से चलाने में भी मदद करता है जैसे माइटोकॉन्ड्रिया, गाल्जी बॉडीज और न्यूकलस, ये तीनों ही सेल्स को सही तरीके से चलाने का काम करता  हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है- आयुर्वेद में त्रिफला कायाकल्प करने वाली दवा के रूप में जाना जाता है। त्रिफला, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे शरीर को बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता से शरीर बाहरी तत्वों के खिलाफ आसानी से लड़ सकता है, जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी होती हैवही लोग बार - बार बीमार पड़ते है।

 त्रिफला, शरीर में एंटीबॉडी के उत्पादन को बढ़ावा देता है, जो शरीर में एंटी जन के खिलाफ लड़ते है और बॉडी को बैक्टीरिया मुक्त रखते है। त्रिफला,शरीर में टी कोशिकाओं के उत्पादन को भी बढ़ावा देते है, जो कि बॉडी की रक्षा प्रणाली को मजबूत बना देती हैं।
कैसे बनाएं त्रिफला - त्रिफला एक आयुर्वेदिक पारंपरिक दवा है जो रसायन या कायाकल्प के नाम से भी प्रसिद्ध है। त्रिफला तीन जड़ी - बूटियों का मिश्रण है -

आमलकी (एमबलिका ऑफीसीनालिस ), हरीतकी ( टरमिनालिया छेबुला ) और विभीतकी ( टरमिनालिया बेलीरिका)। त्रिफला बनाने के लिए तीनों फलों को बराबर बराबर मात्रा में बारीक पीस कर मिला लें और फिर कपड़े से छानकर सेवन करें।
 
कितनी मात्रा में सेवन करें- रात को सोने से पहले एक चम्मच मात्रा में सेवन करें। फिर गुनगुना दूध पी लें।

विशेष- यह दवा कई बीमारियों में रामबाण का काम करती है। इसीलिए उचित परिणाम के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।

डायबिटीज में उपयोगी दवा है भिंडी,

भिंडी
डायबिटीज में बहुत उपयोगी दवा है भिंडी, जानें कैसे करें इसका USEइसका वानस्पतिक नाम एबेल्मोस्कस एस्कुलेंट्स है।

सामान्यत: लोग इसे सिर्फ एक सब्जी के तौर पर देखते है, लेकिन आदिवासी इलाकों में इसे अनेक तरह की बीमारियों के इलाज में उपयोग लाया जाता है। भिंडी में विटामिन और खनिजों सहित विटामिन ए, बी, सी, ई और के और कैल्शियम, लोहा और जस्ता आदि पाया जाता है। इसके अलावा, भिंडी में उच्च स्तर का लसदार फाइबर भी होता है।

- डायबिटीज के रोगियों को अक्सर भिंडी की अधकच्ची सब्जी खानी चाहिए। डांग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार ताजी हरी भिंडी डायबिटीज में बेहद लाभदायक होती है। 

- भिंडी के बीजों का चूर्ण (5 ग्राम), इलायची (5 ग्राम), दालचीनी की छाल का चूर्ण (3 ग्राम) और काली मिर्च (5 दाने) लेकर अच्छी तरह से कूट ले। इस मिश्रण को रोजाना दिन में 3 बार गुनगुने पानी में मिलाकर लें। डायबिटीज में तेजी से फायदा होता है।

- कुछ इलाकों में भिंडी के कटे हुए सिरों को पीने के पानी में डुबो कर सारी रात रखा जाता है। सुबह खाली पेट इस पानी को पी लिया जाता है। छानने के बाद बचे भिंडी के हिस्सों को फेंक दिया जाना चाहिए। माना जाता है कि डायबिटीज नियंत्रण के लिए यह एक कारगर उपाय है।
- भिंडी को बीच से काट लें (लगभग 5 भागों में), नींबू रस (आधा चम्मच), अनार और भुई आंवला की पत्तियां (5-5 ग्राम) आदि को 1 गिलास पानी में डुबोकर रात भर के लिए रख दें।

अगली सुबह सारे मिश्रण को अच्छी तरह से पीसकर रोजाना लगातार 2 बार सात दिनों तक लें। जानकारों की मानी जाए तो पीलिया जैसा घातक रोग इस से एक सप्ताह में ही नियंत्रित हो जाता है। बुखार और सर्दी-खांसी में भी ये दवा रामबाण है।

- करीब 50 ग्राम भिंडी को बारीक काटकर 200 मिली पानी में उबालें। जब यह आधा बच जाए तो इसे सिफलिस के रोगी को दें। एक महीने तक लगातार ये नुस्खा अपनाना चाहिए।

. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)

WARNING! MORE THAN 40 Foods never eat -coming from China

 1-Corn- corn from China. Some producers add sodium cyclamate to their corn. The purpose of this additive is to preserve the yellow color of...