Tuesday, June 24, 2014

Broccoli-Detox

new study published in the journal “Cancer Prevention Research” has officially caught our attention.
The Best Detox-y Broccoli DishesResearchers found that subjects who each day slurped down a drink made with broccoli sprouts—two to three-day-old broccoli seedlings—were more likely than the placebo group to, ahem, filter out high levels of the harmful chemicals benzene and acrolein. (Benzene is associated with pollution, and both benzene and acrolein can be found in cigarette smoke.)
Keep in mind that broccoli sprouts have a greater concentration of the active ingredient—glucoraphanin, which when chewed or swallowed conjures a compound called sulforaphane that actives pollutant-fighting enzymes—than mature broccoli (the stuff you’re used to seeing at the grocery store) contains. When mature broccoli is cooked, the amount of glucoraphanin goes down even further.
But that doesn’t mean you should chuck your steamed broccoli out the window.
"Any amount of broccoli that you eat is probably a good thing,"
But that doesn’t mean you should chuck your steamed broccoli out the window.
"Any amount of broccoli that you eat is probably a good thing,"
 

Monday, June 23, 2014

मुलेठी (यष्टीमधु ) -MULETHI

मुलेठी (यष्टीमधु ) -
      मुलेठी से हम सब परिचित हैं | भारतवर्ष में इसका उत्पादन कम ही होता है | यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयातित की जाती है| मुलेठी की जड़ एवं सत सर्वत्र बाज़ारों में पंसारियों के यहाँ मिलता है | चरकसंहिता में रसायनार्थ यष्टीमधु का प्रयोग विशेष रूप से वर्णित है | सुश्रुत संहिता में यष्टिमधु फल का प्रयोग विरेचनार्थ मिलता है | मुलेठी रेशेदार,गंधयुक्त तथा बहुत ही उपयोगी होती है | यह ही एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मुलेठी वातपित्तशामक है | यह खाने में ठंडी होती है | इसमें ५० प्रतिशत पानी होता है | इसका मुख्य घटक ग्लीसराइज़ीन है जिसके कारण ये खाने में मीठा होता है | इसके अतिरिक्त इसमें घावों को भरने वाले विभिन्न घटक भी मौजूद हैं | मुलेठी खांसी,जुकाम,उल्टी व पित्त को बंद करती है | यह पेट की जलन व दर्द,पेप्टिक अलसर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में भी बहुत उपयोगी है | 
                           आज हम आपको मुलेठी के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- मुलेठी चूर्ण और आंवला चूर्ण २-२ ग्राम की मात्रा में मिला लें | इस चूर्ण को दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम चाटने से खांसी में बहुत लाभ होता है |

२- मुलेठी-१० ग्राम 
     काली मिर्च -१० ग्राम 
     लौंग    -०५ ग्राम 
      हरड़   -०५ ग्राम
     मिश्री - २० ग्राम 
     ऊपर दी गयी सारी सामग्री को मिलाकर पीस लें | इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी और जुकाम,गले की खराबी,सिर दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं | 

३- एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण एक कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है | 

४- मुलेठी को मुहं में रखकर चूंसने से मुहँ के छाले मिटते हैं तथा स्वर भंग (गला बैठना) में लाभ होता है | 

५- एक चम्मच मुलेठी चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट और आँतों की ऐंठन व दर्द का शमन होता है | 

६- फोड़ों पर मुलेठी का लेप लगाने से वो जल्दी पक कर फूट जाते हैं |मुलेठी (यष्टीमधु ) -
मुलेठी से हम सब परिचित हैं | भारतवर्ष में इसका उत्पादन कम ही होता है | यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयातित की जाती है| मुलेठी की जड़ एवं सत सर्वत्र बाज़ारों में पंसारियों के यहाँ मिलता है | चरकसंहिता में रसायनार्थ यष्टीमधु का प्रयोग विशेष रूप से वर्णित है | सुश्रुत संहिता में यष्टिमधु फल का प्रयोग विरेचनार्थ मिलता है | मुलेठी रेशेदार,गंधयुक्त तथा बहुत ही उपयोगी होती है | यह ही एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मुलेठी वातपित...्तशामक है | यह खाने में ठंडी होती है | इसमें ५० प्रतिशत पानी होता है | इसका मुख्य घटक ग्लीसराइज़ीन है जिसके कारण ये खाने में मीठा होता है | इसके अतिरिक्त इसमें घावों को भरने वाले विभिन्न घटक भी मौजूद हैं | मुलेठी खांसी,जुकाम,उल्टी व पित्त को बंद करती है | यह पेट की जलन व दर्द,पेप्टिक अलसर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में भी बहुत उपयोगी है |
आज हम आपको मुलेठी के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- मुलेठी चूर्ण और आंवला चूर्ण २-२ ग्राम की मात्रा में मिला लें | इस चूर्ण को दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम चाटने से खांसी में बहुत लाभ होता है |
२- मुलेठी-१० ग्राम
काली मिर्च -१० ग्राम
लौंग -०५ ग्राम
हरड़ -०५ ग्राम
मिश्री - २० ग्राम
ऊपर दी गयी सारी सामग्री को मिलाकर पीस लें | इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी और जुकाम,गले की खराबी,सिर दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं |
३- एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण एक कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |
४- मुलेठी को मुहं में रखकर चूंसने से मुहँ के छाले मिटते हैं तथा स्वर भंग (गला बैठना) में लाभ होता है |
५- एक चम्मच मुलेठी चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट और आँतों की ऐंठन व दर्द का शमन होता है |
६- फोड़ों पर मुलेठी का लेप लगाने से वो जल्दी पक कर फूट जाते हैं |
 

Saturday, June 21, 2014

FACTS ABOUT FISH, SEAFOOD- DANGEROUS MERCURY

Watch this small video regarding sea-foods, which people see safe and recommended by Doctors everyday.

Once you are done , please watch small video regarding bleak future of Earth's living creature as Forest is on artificial oxygen- INCREDIBLE RAIN FOREST IS LOOSING LIFE



Sunday, June 15, 2014

NEEM, THE GREEN GOLD

The Neem trees (Azdirachta Indica) have started to flower all over India. 
 Since American firms such as WR Grace et Agridyne, have tried to patent Neem, the Indian Govt may have started realising that they may be sitting on a pile of gold. Or have they? Every third shop today in India is an allopathic medical store. Neem is one of the most neglected, underused, overlooked trees in India. Yet its properties are unique: its bark is wonderful against malaria and sometimes even early cancer; its oil extracted from its seeds and fruits is an excellent natural pesticide that has been used effectively to protect cashew nut flowers against insects (instead of the deadly pesticides that Tamil Nadu & Kerala farmers indiscriminately spray repeatedly). Its leaves, its seeds, its small branches, have unique medical properties that used to be known in India millenniums ago. “Neem is Shakti”, says Sri Sri Ravi Shankar, for it discriminates. An antibiotic kills the good and bad microbes, whereas neem only eliminates the bad and spares the good”.
Here a few simple easy to do yourself recipes:
1)    Pick up about 20 young neem leaves early morning, wash them under the tap and put them in a blender with a glass of fresh (or mineral) water. Blend for 3 or 4 minutes. Strain it and drink that wonderful deep green juice before breakfast (for those who find it too bitter, add some liquid jagry). It keeps away worms and amoebas, clears your blood and is good for the liver.
2)    Enema has become a dirty word today, but it’s a highly effective way of cleaning one’s intestines and getting rid of the poison that accumulates there, specially for the non-veg people. Pick up in the evening 2 or three whole young branches of neem. Wash them under the tap and boil them whole for an hour. Keep it covered for the whole night so it soaks well. You can administer yourself the enema in the morning in your own bathroom with a simple device that is cheap and easy to find in pharmacies. I recommend at least 3 repeats, 2 days in a row, four or five times a year.
3)    Pick up the seeds of the neem tree, dry them in the sun and put them in a blender with one or two block of rock salt. The brown powder that comes out is an excellent toothpaste, that is not only good for the teeth because of its antiseptic properties, but rubbed gently on the gums, protect & strengthen them, something that modern toothpastes do not do.
 Adds on Indian TV, promoting some rubbish toothpaste or some miracle whitener (why do Indian girls crave for whiteness, when brown is so sexy and westerners spend billions in creams to get brown on their beaches?), it makes me mad. India has so much ancient medical knowledge still alive in Ayurveda and simple rural remedies such as neem, tulsi, oe Aloe Vera. We do hope that the craze for westernization that was also part of the Congress and Sonia Gandhi’s brief, will metamorphose in a return to the ancient roots with Mr Modi, while adopting all that is good in the West.

अशोक -

Photo: अशोक -
               यह भारतीय वनौषधियों में एक दिव्य रत्न है | भारतवर्ष में इसकी कीर्ति का गान बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है | प्राचीनकाल में शोक को दूर करने  और प्रसन्नता के लिए अशोक वाटिकाओं एवं उद्यानों का प्रयोग होता था और इसी आश्रय से इसके नाम शोकनाश ,विशोक,अपशोक आदि रखे गए हैं| सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़  को पवित्र एवं आदरणीय मानते ही हैं ,किन्तु बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दॄष्टि से देखते हैं क्यूंकि कहा जाता है की भगवानबुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था | अशोक के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र बाग़ बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुंदरता के लिए लगाए जाते हैं | भारत के हिमालयी क्षेत्रों तथा पश्चिमी प्रायद्वीप में ७५० मीटर की ऊंचाई पर मुख्यतः पूर्वी बंगाल, बिहार,उत्तराखंड,कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में साधारणतया नहरों के किनारे व सदाहरित  वनों में पाया जाता है| मुख्यतया अशोक की दो प्रजातियां होती हैं ,जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है | 
      आज हम आपको अशोक के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- श्वास - ६५ मिलीग्राम अशोक बीज चूर्ण को पान के बीड़े में रखकर खिलने से श्वास रोग में लाभ होता है | 

२- रक्तातिसार- अशोक के तीन-चार ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त ) में लाभ होता है | 

३- रक्तार्श ( बवासीर )- अशोक की  छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में ले कर दस ग्राम मात्रा को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख  दें , सुबह पानी छान कर पी लें इसी प्रकार सुबह का भिगोया हुआ शाम को पी लें ,इससे खूनी बवासीर में शीघ्र लाभ मिलता है |
४- अशोक के १-२ ग्राम बीज को पानी में पीस कर दो चम्मच की मात्रा में पीस कर पीने से पथरी के दर्द में आराम मिलता है | 

५-प्रदर - अशोक छाल चूर्ण और मिश्री को संभाग खरल कर , तीन ग्राम की मात्रा में लेकर गो-दुग्ध प्रातः -सायं सेवन करने से श्वेत -प्रदर में लाभ होता है | 
अशोक के २-३ ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है |

अशोक -
यह भारतीय वनौषधियों में एक दिव्य रत्न है | भारतवर्ष में इसकी कीर्ति का गान बहुत प्राचीनकाल से हो रहा है | प्राचीनकाल में शोक को दूर करने और प्रसन्नता के लिए अशोक वाटिकाओं एवं उद्यानों का प्रयोग होता था और इसी आश्रय से इसके नाम शोकनाश ,विशोक,अपशोक आदि रखे गए हैं| सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़ को पवित्र एवं आदरणीय मानते ही हैं ,किन्तु बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दॄष्टि से देखते हैं क्यूंकि कहा जाता है की भगवानबुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था | अशोक के वृक्ष भारतवर्ष में सर्वत्र बाग़ बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुंदरता के लिए लगाए जाते हैं | भारत के हिमालयी क्षेत्रों तथा पश्चिमी प्रायद्वीप में ७५० मीटर की ऊंचाई पर मुख्यतः पूर्वी बंगाल, बिहार,उत्तराखंड,कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में साधारणतया नहरों के किनारे व सदाहरित वनों में पाया जाता है| मुख्यतया अशोक की दो प्रजातियां होती हैं ,जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है |
आज हम आपको अशोक के कुछ औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- श्वास - ६५ मिलीग्राम अशोक बीज चूर्ण को पान के बीड़े में रखकर खिलने से श्वास रोग में लाभ होता है |

२- रक्तातिसार- अशोक के तीन-चार ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त ) में लाभ होता है |

३- रक्तार्श ( बवासीर )- अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में ले कर दस ग्राम मात्रा को रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें , सुबह पानी छान कर पी लें इसी प्रकार सुबह का भिगोया हुआ शाम को पी लें ,इससे खूनी बवासीर में शीघ्र लाभ मिलता है |
४- अशोक के १-२ ग्राम बीज को पानी में पीस कर दो चम्मच की मात्रा में पीस कर पीने से पथरी के दर्द में आराम मिलता है |

५-प्रदर - अशोक छाल चूर्ण और मिश्री को संभाग खरल कर , तीन ग्राम की मात्रा में लेकर गो-दुग्ध प्रातः -सायं सेवन करने से श्वेत -प्रदर में लाभ होता है |
अशोक के २-३ ग्राम फूलों को जल में पीस कर पिलाने से रक्तप्रदर में लाभ होता है |

उड़द -

Photo: उड़द -
           उड़द का उपयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है । इसकी दाल व बाजरे की रोटी मेहनती लोगों का प्रिय भोजन है| उड़द काली व हरी कई प्रकार की होती है | सब प्रकार की उड़दों में काली उड़द उत्तम मानी गयी है। वैद्यक ग्रंथो में अनेक पौष्टिक प्रयोगों में उड़द की प्रशंसा की गयी है | यह दाल वायुकारक होती है | इसके इस दोष को दूर करने के लिए इसमें हींग पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए| दूध देने वाली गाय या भैंस को उड़द खिलाने से ये दूध अधिक मात्रा में देती हैं | इसके पत्तों और डंडी का चूरा भी पशुओं को खिलाया जाता है | 
                                                                                                     उड़द एक पौष्टिक दाल है | यह पित्त और कफ को बढ़ाता है | उड़द को अपनी पाचन शक्ति को ध्यान में रखते हुए उपयोग करना चाहिए | विभिन्न रोगों में उड़द का उपयोग -

१- उड़द की दाल को पानी में भिगो लें | जब यह पूरी तरह फूल जाए तब इसको पीसकर सिर पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है | 

२- साबुत उड़द जले हुए कोयले पर डालें और इसका धुआं सूंघें | इससे हिचकी रोग ठीक हो जाता है | 

३- उड़द को पीसकर घाव के ऊपर बाँधने से पस निकल जाती है तथा घाव ठीक हो जाता है | 

४- उड़द के आटे में थोड़ी सौंठ,थोड़ा नमक,और थोड़ी हींग मिलाकर उसकी रोटी बनाकर एक तरफ से सेंक लें और उसको उतारकर कच्चे भाग की तरफ तिल का तेल लगाकर वेदनायुक्त स्थान पर बाँधने से वेदना का शमन होता है | 

५- रात को ५० ग्राम उड़द की दाल भिगो दें |  सुबह इसे पीसकर आधा गिलास दूध में स्वादानुसार मिश्री मिलाकर पियें | यह हृदय को शक्ति देता है |

उड़द -
उड़द का उपयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है । इसकी दाल व बाजरे की रोटी मेहनती लोगों का प्रिय भोजन है| उड़द काली व हरी कई प्रकार की होती है | सब प्रकार की उड़दों में काली उड़द उत्तम मानी गयी है। वैद्यक ग्रंथो में अनेक पौष्टिक प्रयोगों में उड़द की प्रशंसा की गयी है | यह दाल वायुकारक होती है | इसके इस दोष को दूर करने के लिए इसमें हींग पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए| दूध देने वाली गाय या भैंस को उड़द खिलाने से ये दूध अधिक मात्रा में देती हैं | ...इसके पत्तों और डंडी का चूरा भी पशुओं को खिलाया जाता है |
उड़द एक पौष्टिक दाल है | यह पित्त और कफ को बढ़ाता है | उड़द को अपनी पाचन शक्ति को ध्यान में रखते हुए उपयोग करना चाहिए | विभिन्न रोगों में उड़द का उपयोग -

१- उड़द की दाल को पानी में भिगो लें | जब यह पूरी तरह फूल जाए तब इसको पीसकर सिर पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है |

२- साबुत उड़द जले हुए कोयले पर डालें और इसका धुआं सूंघें | इससे हिचकी रोग ठीक हो जाता है |

३- उड़द को पीसकर घाव के ऊपर बाँधने से पस निकल जाती है तथा घाव ठीक हो जाता है |

४- उड़द के आटे में थोड़ी सौंठ,थोड़ा नमक,और थोड़ी हींग मिलाकर उसकी रोटी बनाकर एक तरफ से सेंक लें और उसको उतारकर कच्चे भाग की तरफ तिल का तेल लगाकर वेदनायुक्त स्थान पर बाँधने से वेदना का शमन होता है |

५- रात को ५० ग्राम उड़द की दाल भिगो दें | सुबह इसे पीसकर आधा गिलास दूध में स्वादानुसार मिश्री मिलाकर पियें | यह हृदय को शक्ति देता है |

शहतूत -

Photo: शहतूत -
             यह मूलतः चीन में पाया जाता है | यह साधारणतया जापान ,नेपाल,पाकिस्तान,बलूचिस्तान ,अफगानिस्तान ,श्रीलंका,वियतनाम तथा सिंधु के उत्तरी भागों में पाया जाता है | भारत में यह पंजाब,कश्मीर,उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश एवं उत्तरी पश्चिमी हिमालय में पाया जाता है | इसकी दो प्रजातियां पायी जाती हैं | १- तूत (शहतूत) २-तूतड़ी | 
                              इसके फल लगभग २.५ सेंटीमीटर लम्बे,अंडाकार अथवा लगभग गोलाकार ,श्वेत अथवा पक्वावस्था में लगभग हरिताभ-कृष्ण अथवा  गहरे बैंगनी वर्ण के होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी से जून तक होता है | इसके फल में प्रोटीन,वसा,कार्बोहायड्रेट,खनिज,कैल्शियम,फॉस्फोरस,कैरोटीन ,विटामिन A ,B एवं C,पेक्टिन,सिट्रिक अम्ल एवं मैलिक अम्ल पाया जाता है |आज हम आपको शहतूत के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- शहतूत के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारे करने से गले के दर्द में आराम होता है । 

२- यदि मुँह में छाले हों तो शहतूत के पत्ते चबाने से लाभ होता है | 

३- शहतूत के फलों का सेवन करने से गले की सूजन ठीक होती है | 

४- पांच - दस मिली शहतूत फल स्वरस का सेवन करने से जलन,अजीर्ण,कब्ज,कृमि तथा अतिसार में अत्यंत लाभ होता है | 

५- एक ग्राम शहतूत छाल के चूर्ण में शहद मिलाकर चटाने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं | 

६- शहतूत के बीजों को पीस कर लगाने से पैरों की बिवाईयों में लाभ होता है | 

७- शहतूत के पत्तों को पीसकर लेप करने से त्वचा की बीमारियों में लाभ होता है|  
८- सूखे हुए शहतूत के फलों को पीसकर आटे में मिलाकर उसकी रोटी बनाकर खाने से शरीर पुष्ट होता है |#watchAasthaChannel5amTo8am


शहतूत -
यह मूलतः चीन में पाया जाता है | यह साधारणतया जापान ,नेपाल,पाकिस्तान,बलूचिस्तान ,अफगानिस्तान ,श्रीलंका,वियतनाम तथा सिंधु के उत्तरी भागों में पाया जाता है | भारत में यह पंजाब,कश्मीर,उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश एवं उत्तरी पश्चिमी हिमालय में पाया जाता है | इसकी दो प्रजातियां पायी जाती हैं | १- तूत (शहतूत) २-तूतड़ी |
इसके फल लगभग २.५ सेंटीमीटर लम्बे,अंडाकार अथवा लगभग गोलाकार ,श्वेत अथवा पक्वावस्था में लगभग हरिताभ-कृष्ण अथवा गहरे बैंगन...ी वर्ण के होते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी से जून तक होता है | इसके फल में प्रोटीन,वसा,कार्बोहायड्रेट,खनिज,कैल्शियम,फॉस्फोरस,कैरोटीन ,विटामिन A ,B एवं C,पेक्टिन,सिट्रिक अम्ल एवं मैलिक अम्ल पाया जाता है |आज हम आपको शहतूत के औषधीय गुणों से अवगत कराएंगे -

१- शहतूत के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारे करने से गले के दर्द में आराम होता है ।

२- यदि मुँह में छाले हों तो शहतूत के पत्ते चबाने से लाभ होता है |

३- शहतूत के फलों का सेवन करने से गले की सूजन ठीक होती है |

४- पांच - दस मिली शहतूत फल स्वरस का सेवन करने से जलन,अजीर्ण,कब्ज,कृमि तथा अतिसार में अत्यंत लाभ होता है |

५- एक ग्राम शहतूत छाल के चूर्ण में शहद मिलाकर चटाने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं |

६- शहतूत के बीजों को पीस कर लगाने से पैरों की बिवाईयों में लाभ होता है |

७- शहतूत के पत्तों को पीसकर लेप करने से त्वचा की बीमारियों में लाभ होता है|
८- सूखे हुए शहतूत के फलों को पीसकर आटे में मिलाकर उसकी रोटी बनाकर खाने से शरीर पुष्ट होता है

WARNING! MORE THAN 40 Foods never eat -coming from China

 1-Corn- corn from China. Some producers add sodium cyclamate to their corn. The purpose of this additive is to preserve the yellow color of...