Tuesday, September 8, 2015
20 मिनट की योग-शृँखला 20 minutes yoga
20 मिनट की योग-शृँखला।
वज्रासन। वज्रासन सबसे सरल आसन है। बस पैरों को घुटनों से मोड़कर बैठना है। पैरों के अँगूठे एक-दूसरे के ऊपर रहेंगे, एड़ियों को बाहर की ओर फैलाकर बैठने के लिए जगह बना लेंगे। हाथों को घुटनों पर रखेंगे (छायाचित्र-1)। शरीर का आकार वज्र-जैसा बनता है, इसलिए इसे वज्रासन कहते हैं। (यही एक ऐसा आसन है, जिसे खाना खाने के बाद भी किया ज सकता है- बल्कि सही मायने में खाना खाने के बाद समय मिलने पर दो-चार मिनट के लिए इस मुद्रा में बैठना चाहिए।)
पर्वतासन। वज्रासन में रहते हुए दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर हम सर के ऊपर ले जायेंगे। हथेलियाँ ऊपर की ओर। दृष्टि भी ऊपर की ओर (छायाचित्र-2)। हाथों को ऊपर ले जाते समय ही फेफड़ों में हम साँस भर लेंगे और इसे सौ गिनने तक रोकने की कोशिश करेंगे। अगर साँस रोकने की आदत नहीं है, तो कोई बात नहीं। सिर्फ तीस गिनने तक साँस रोकेंगे और साँस छोड़ते हुए हाथों को नीचे ले आयेंगे। इस प्रक्रिया को तीन बार दुहरा लेंगे।
शशांकासन। शशांक यानि खरगोश। वज्रासन में बैठे-बैठे ही आगे झुककर सर को जमीन से सटा लेंगे। हाथों को पीठ पर रखेंगे (छायाचित्र-3)।
सुप्त वज्रासन। वज्रासन में रहते हुए ही पीछे लेटना है। पीछे झुकते समय जरा-सा मुड़कर पहले एक केहुनी को जमीन से टिकायेंगे (छायाचित्र-4), फिर दूसरी केहुनी को। अन्त में सर को धीरे-से जमीन पर टिका लेंगे। अब हाथों को जाँघों पर रख सकते हैं (छायाचित्र-5)। सौ गिनने के बाद वापस वज्रासन में लौटते समय भी केहुनियों का सहारा लेंगे।
शशांकासन: दूसरा प्रकार। वज्रासन में घुटनों के ऊपर सीधे हो जायेंगे। धीरे-धीरे आगे झुककर सर को जमीन से सटा लेंगे। इस बार हाथ पैरों की एड़ियों पर रहेंगे (छायाचित्र-6)। शशांकासन हमारे चेहरे पर रक्त का संचरण बढ़ाता है- दोनों प्रकार के शशांकासन की मुद्रा में रह्ते समय हम इसे अनुभव कर सकते हैं।
उष्ट्रासन। उष्ट्र यानि ऊँट। शशांकासन (दूसरा प्रकार) से लौटकर सीधे होने के बाद हम पीछे झुकेंगे। पहले जरा-सा तिरछा होकर एक हाथ को एक एड़ी पर टिकायेंगे (छायाचित्र-7), फिर दूसरे हाथ को भी दूसरी एड़ी पर टिका लेंगे। अब सर को पीछे लटकने देंगे (छायाचित्र-8)। आसन समाप्त होने पर बहुत धीरे-से एक-एक हाथ को एड़ियों से हटाकर सीधे होंगे।
पश्चिमोत्तानासन। सामान्य ढंग से बैठकर दोनों पैरों को सामने फैला लेंगे- दोनों पैर आपस में सटे रहेंगे। पहले दोनों हाथों को आकाश की ओर खींचकर मेरूदण्ड को सीधा करेंगे और फिर आगे झुककर पैरों के दोनों अँगूठों को पकड़ लेंगे (छायाचित्र-9)। इस आसन में नाक को घुटनों के करीब ले जाने की हम कोशिश करते हैं; मगर घुटने ऊपर नहीं उठने चाहिए- इन्हें जमीन से चिपके रहना है।
चक्रासन। यह एक कठिन आसन है- खासकर उनके लिए, जिन्होंने कसरत, योग वगैरह कभी नहीं किया है। अधिक उम्र वालों के लिए भी इसे साधना कठिन है। फिर भी अगर इस आसन को शृँखला में शामिल किया जा रहा है, तो उसका कारण यह है कि मनुष्य का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य काफी हद तक मेरूदण्ड की लोच पर निर्भर करता है। हमारी रीढ़ की हड्डी जितनी लचीली होगी, हमारा शरीर उतना ही स्वस्थ रहेगा और हमारा मन उतना ही प्रसन्न रहेगा। (बच्चे इतने चुस्त-दुरुस्त और प्रसन्न कैसे रह लेते हैं- इसके पीछे एक कारण यह भी है कि उनकी मेरूदण्ड लचीली होती है!) खैर, अगर हममें से किसी ने योग पहले नहीं किया है, तो बेहतर है कि वे दो या तीन महीनों तक इसे नहीं करें, इसके बाद दो-तीन महीनों तक अर्द्धचक्रासन (छायाचित्र-11) करें- उसके बाद ही चक्रासन करने की कोशिश करें- वह भी बहुत सावधानी से।
चक्रासन के लिए पहले पीठ के बल लेटकर पैरों को घुटनों से मोड़कर शरीर के निकट ले आयेंगे; हाथों को सर के दोनों तरफ रखेंगे- उँगलियों को शरीर की ओर रखते हुए (छायाचित्र-10)। अब हाथों और कन्धों पर शरीर का वजन डालते हुए कमर को हवा में उठा लेंगे- दरअसल, यही मुद्रा ‘अर्द्धचक्रासन’ है (छायाचित्र-11)। अन्त में कन्धों को भी हवा में उठा लेंगे। शरीर का वजन हाथों और पैरों पर रहेगा और मेरुदण्ड अर्द्धचक्र बनायेगा (छायाचित्र-12)। लौटते समय पहले धीरे-से कन्धों को जमीन पर रखेंगे और फिर कमर को धीरे-से जमीन पर टिकायेंगे।
शवासन। शृँखला के मध्यान्तर के रुप में हम शवासन करेंगे। शव यानि मृत। पीठ के बल शान्त लेट जायेंगे- आँखें बन्द, हथेलियाँ ऊपर की ओर- और यह महसूस करेंगे कि हमारा शरीर बादलों के बीच तैर रहा है (छायाचित्र-13)। शवासन के दौरान हमारे शरीर में रक्त का वितरण एक समान हो जायेगा, इससे जब हम अगला आसन- सर्वांगासन- करेंगे, तब चेहरे पर रक्त का दवाब सामान्य रहेगा।
सर्वांगासन। जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह सभी अंगों का आसन है। जब कभी समय की कमी हो, सिर्फ इसी आसन को (तीन या पाँच मिनट के लिए) करना चाहिए। इसे आप “मास्टर” आसन कह सकते हैं- यानि सभी आसनों की कुँजी! कहते हैं कि इस आसन के अभ्यास से “वलितम्-पलितम्-गलितम्” (अर्थात् झुर्रियाँ पड़ना, बाल झड़ना, कोशिकाओं का क्षय- वार्धक्य के तीनों लक्षणों) को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। दूसरी बात, हमारे रक्त में जो ऑक्सीजन घुला रहता है, उसके ज्यादातर अंश का इस्तेमाल हमारा मस्तिष्क करता है; जबकि हृदय से मस्तिष्क की ओर रक्त की पम्पिंग स्वाभाविक रुप से कमजोर होती है। ऐसे में, मिनट भर के लिए भी मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुँचाने का यह बढ़िया जरिया है। तीसरी बात, पेट की आँतें भी मिनट भर के लिए दवाब से मुक्त हो जाती हैं।
लेकिन कभी कसरत/योगाभ्यास जिन्होंने नहीं किया है, वे दो-तीन महीने इसका अभ्यास न करें, बाद में दो-तीन महीने ‘विपरीतकरणी मुद्रा’ (छायाचित्र-16) का अभ्यास करें और उसके बाद ही सर्वांगासन करें।
खैर। सर्वांगासन एक झटके में न कर हम पाँच चरणों में करेंगे।
पहला चरण शवासन है, जो हमने कर लिया।
दूसरे चरण में दोनों पैरों को जमीन से थोड़ा-सा (15-20 डिग्री) ऊपर उठायेंगे और 30 गिनने तक रुकेंगे (छायाचित्र-14)।
तीसरे चरण में पैरों को थोड़ा और ऊपर (90 डिग्री से कुछ कम) ले जायेंगे और वहाँ भी 30 गिनने तक रुकेंगे (छायाचित्र-15)।
चौथे चरण में कमर को हाथों का सहारा देते हुए पैरों को सर के आगे ले जायेंगे- चित्र से बेहतर समझ में आयेगा (छायाचित्र-16)। यही मुद्रा “विपरीतकरणी मुद्रा” है। यहाँ भी 30 गिनने तक रुकेंगे।
अब पाँचवे और अन्तिम चरण में पैरों को सीधा आकाश की ओर कर लेंगे- कमर सीधी, शरीर का वजन कन्धों तथा सर के पिछले हिस्से पर। कमर को हाथों का सहारा जारी रहेगा (छायाचित्र-17)।
आसन से लौटते समय पहले विपरीतकरणी मुद्रा में आयेंगे, फिर दूसरे और तीसरे चरण में, और फिर अन्त में पैरों को धीरे-से जमीन पर रखकर कुछ सेकेण्ड सुस्तायेंगे।
मत्स्यासन। मत्स्य यानि मछली। अब हम जो भी योगाभ्यास करेंगे, उसके लिए “पद्मासन” जरूरी है। यहाँ यह मान लिया जा रहा है कि भारतीय होने के नाते आप जानते हैं कि पद्मासन में कैसे बैठते हैं। अभ्यास नहीं है, तो धीरे-धीरे अभ्यास करना पड़ेगा।
खैर, पद्मासन में बैठने के बाद हम धीरे-धीरे पीछे की ओर लेटेंगे। लेटते समय जरा-सा तिरछा होकर पहले एक केहुनी को जमीन पर टिकायेंगे (छायाचित्र-18), फिर दूसरी केहुनी को और फिर, सर को जमीन से टिका लेंगे। सर टिक जाने के बाद हाथों को जाँघों पर रख सकते हैं (छायाचित्र-19)। आसन से लौटते समय भी केहुनियों का सहारा लेंगे। सर्वांगासन में गर्दन की जो स्थिति बनती है, उसकी उल्टी स्थिति इस आसन में बनती है; इसलिए मत्स्यासन को सर्वांगासन के बाद किया जाता है।
प्रणामासन। इसमें पद्मासन में बैठे-बैठे आगे की ओर झुकना है। हथेलियों को प्रणाम की स्थिति में लाकर जमीन पर रखकर धीरे-धीरे आगे की ओर खिसकाते जायेंगे- जब तक कि सर जमीन से न सट जाय (छायाचित्र-20)।
तुलासन। तुला माने तराजू। पद्मासन में रहते हुए दोनों हाथों को दोनों तरफ जमीन पर रखेंगे और फिर हाथों पर शरीर का वजन डालते हुए शरीर को हवा में उठा लेंगे (छायाचित्र-21)। शुरु-शुरु में 30-30 (या सुविधानुसार इससे कम) की गिनती के साथ इसे तीन (या इससे अधिक) बार करेंगे, बाद में सध जाने पर सौ गिनने तक इस मुद्रा में रह सकते हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम। यह एक जाहिर-सी बात है कि हम आम तौर पर जिस तरीके से साँस लेते हैं, उससे फेफड़ों के पूरे आयतन में हवा नहीं भरती। हाँ, दौड़ने/जॉगिंग या कसरत करने के क्रम में फेफड़ों में पूरी हवा भरती है। फिर भी, इस प्राणायाम का अपना अलग महत्व है, क्योंकि इसमें साँस गहरी होती है।
पद्मासन में बैठकर तर्जनी और मध्यमा उँगलियों को भ्रूमध्य (दोनों भौंहों के बीच) पर रखेंगे। अगर यह हाथ दाहिना है, तो अँगूठा दाहिनी नासिका की ओर तथा अनामिका (उँगली) बाँयी नासिका की ओर रहेगी।
पहले अँगूठे से दाहिनी नासिका को बन्द कर (छायाचित्र-22) बाँयी नासिका से गहरी साँस लेंगे और अनामिका से बाँयी नासिका को बन्द कर (छायाचित्र-23) दाहिनी नासिका से अँगूठे को हटाकर साँस बाहर निकाल देंगे।
अगली बार दाहिनी नासिका से गहरी साँस लेकर बाँयी नासिका से साँस निकालेंगे।
यह क्रम चलता रहेगा। साँस लेते समय फेफड़ों को फुलाने की कोशिश करेंगे और साँस छोड़ते समय पेट को थोड़ा-सा पिचका लेंगे। इस प्राणायाम के लिए कुल चार मिनट का समय निर्धारित है- मगर घड़ी देखने के बजाय हम गिनकर 12 बार गहरी साँस भरेंगे और छोड़ेंगे।
ध्यान। पद्मासन में ही मेरूदण्ड बिलकुल सीधी कर हम बैठेंगे। दोनों हाथ घुटनों पर- हथेलियाँ ऊपर की ओर। अगर हम तर्जनी उँगलियों को अँगूठों की जड़ पर रखते हुए मध्यमा को जमीन से सटा लें, तो यह ‘ज्ञानमुद्रा’ बन जायेगी (छायाचित्र-24)।
आँखें बन्द कर हम यह कल्पना करेंगे कि हमारे शरीर की सारी ऊर्जा घनीभूत होकर मेरूदण्ड की निचली छोर पर जमा हो रही है। इस स्थिति में लगभग 10 तक गिनेंगे। इसके बाद अनुभव करेंगे कि घनीभूत ऊर्जा की वह गेन्द नाभि पर आ गयी है। यहाँ भी दस की गिनती तक रुकेंगे। इसके बाद ऊर्जा-पुँज हृदय में और फिर भ्रूमध्य (दोनों भौंहों के बीच) में आकर रुकेगी। बेशक, दोनों जगह दस-दस तक गिनेंगे। अन्त में, हम यह अनुभव करेंगे कि यह ऊर्जा हमारी माथे के ऊपर से निकल कर अनन्त ब्रह्माण्ड से मिल रही है।
इस प्रकार, ध्यान की यह प्रक्रिया एक मिनट की है। (आज के जमाने के हिसाब से यही बहुत है!) सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि ध्यान बीच में न टूटे- अर्थात् ऊर्जा-पुँज (काल्पनिक ही सही) शरीर के बीच में ही कहीं छूट न जाये। दूसरे शब्दों में, ‘मूलाधार चक्र’ से शुरु हुई ऊर्जा की इस यात्रा को ‘सहस्स्रार चक्र’ से बाहर भेजकर पूर्ण करना ही है।
आशा की जानी चाहिए कि ध्यान हमारी मानसिक क्षमताओं को बढ़ायेगा।
*
उपसंहार
इस प्रकार, रात में आधा घण्टा पहले सोकर और सुबह आधा घण्टा पहले जागकर लगभग 20 मिनट समय खर्च कर हम न केवल अपने शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं।
वज्रासन। वज्रासन सबसे सरल आसन है। बस पैरों को घुटनों से मोड़कर बैठना है। पैरों के अँगूठे एक-दूसरे के ऊपर रहेंगे, एड़ियों को बाहर की ओर फैलाकर बैठने के लिए जगह बना लेंगे। हाथों को घुटनों पर रखेंगे (छायाचित्र-1)। शरीर का आकार वज्र-जैसा बनता है, इसलिए इसे वज्रासन कहते हैं। (यही एक ऐसा आसन है, जिसे खाना खाने के बाद भी किया ज सकता है- बल्कि सही मायने में खाना खाने के बाद समय मिलने पर दो-चार मिनट के लिए इस मुद्रा में बैठना चाहिए।)
पर्वतासन। वज्रासन में रहते हुए दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर हम सर के ऊपर ले जायेंगे। हथेलियाँ ऊपर की ओर। दृष्टि भी ऊपर की ओर (छायाचित्र-2)। हाथों को ऊपर ले जाते समय ही फेफड़ों में हम साँस भर लेंगे और इसे सौ गिनने तक रोकने की कोशिश करेंगे। अगर साँस रोकने की आदत नहीं है, तो कोई बात नहीं। सिर्फ तीस गिनने तक साँस रोकेंगे और साँस छोड़ते हुए हाथों को नीचे ले आयेंगे। इस प्रक्रिया को तीन बार दुहरा लेंगे।
शशांकासन। शशांक यानि खरगोश। वज्रासन में बैठे-बैठे ही आगे झुककर सर को जमीन से सटा लेंगे। हाथों को पीठ पर रखेंगे (छायाचित्र-3)।
सुप्त वज्रासन। वज्रासन में रहते हुए ही पीछे लेटना है। पीछे झुकते समय जरा-सा मुड़कर पहले एक केहुनी को जमीन से टिकायेंगे (छायाचित्र-4), फिर दूसरी केहुनी को। अन्त में सर को धीरे-से जमीन पर टिका लेंगे। अब हाथों को जाँघों पर रख सकते हैं (छायाचित्र-5)। सौ गिनने के बाद वापस वज्रासन में लौटते समय भी केहुनियों का सहारा लेंगे।
शशांकासन: दूसरा प्रकार। वज्रासन में घुटनों के ऊपर सीधे हो जायेंगे। धीरे-धीरे आगे झुककर सर को जमीन से सटा लेंगे। इस बार हाथ पैरों की एड़ियों पर रहेंगे (छायाचित्र-6)। शशांकासन हमारे चेहरे पर रक्त का संचरण बढ़ाता है- दोनों प्रकार के शशांकासन की मुद्रा में रह्ते समय हम इसे अनुभव कर सकते हैं।
उष्ट्रासन। उष्ट्र यानि ऊँट। शशांकासन (दूसरा प्रकार) से लौटकर सीधे होने के बाद हम पीछे झुकेंगे। पहले जरा-सा तिरछा होकर एक हाथ को एक एड़ी पर टिकायेंगे (छायाचित्र-7), फिर दूसरे हाथ को भी दूसरी एड़ी पर टिका लेंगे। अब सर को पीछे लटकने देंगे (छायाचित्र-8)। आसन समाप्त होने पर बहुत धीरे-से एक-एक हाथ को एड़ियों से हटाकर सीधे होंगे।
पश्चिमोत्तानासन। सामान्य ढंग से बैठकर दोनों पैरों को सामने फैला लेंगे- दोनों पैर आपस में सटे रहेंगे। पहले दोनों हाथों को आकाश की ओर खींचकर मेरूदण्ड को सीधा करेंगे और फिर आगे झुककर पैरों के दोनों अँगूठों को पकड़ लेंगे (छायाचित्र-9)। इस आसन में नाक को घुटनों के करीब ले जाने की हम कोशिश करते हैं; मगर घुटने ऊपर नहीं उठने चाहिए- इन्हें जमीन से चिपके रहना है।
चक्रासन। यह एक कठिन आसन है- खासकर उनके लिए, जिन्होंने कसरत, योग वगैरह कभी नहीं किया है। अधिक उम्र वालों के लिए भी इसे साधना कठिन है। फिर भी अगर इस आसन को शृँखला में शामिल किया जा रहा है, तो उसका कारण यह है कि मनुष्य का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य काफी हद तक मेरूदण्ड की लोच पर निर्भर करता है। हमारी रीढ़ की हड्डी जितनी लचीली होगी, हमारा शरीर उतना ही स्वस्थ रहेगा और हमारा मन उतना ही प्रसन्न रहेगा। (बच्चे इतने चुस्त-दुरुस्त और प्रसन्न कैसे रह लेते हैं- इसके पीछे एक कारण यह भी है कि उनकी मेरूदण्ड लचीली होती है!) खैर, अगर हममें से किसी ने योग पहले नहीं किया है, तो बेहतर है कि वे दो या तीन महीनों तक इसे नहीं करें, इसके बाद दो-तीन महीनों तक अर्द्धचक्रासन (छायाचित्र-11) करें- उसके बाद ही चक्रासन करने की कोशिश करें- वह भी बहुत सावधानी से।
चक्रासन के लिए पहले पीठ के बल लेटकर पैरों को घुटनों से मोड़कर शरीर के निकट ले आयेंगे; हाथों को सर के दोनों तरफ रखेंगे- उँगलियों को शरीर की ओर रखते हुए (छायाचित्र-10)। अब हाथों और कन्धों पर शरीर का वजन डालते हुए कमर को हवा में उठा लेंगे- दरअसल, यही मुद्रा ‘अर्द्धचक्रासन’ है (छायाचित्र-11)। अन्त में कन्धों को भी हवा में उठा लेंगे। शरीर का वजन हाथों और पैरों पर रहेगा और मेरुदण्ड अर्द्धचक्र बनायेगा (छायाचित्र-12)। लौटते समय पहले धीरे-से कन्धों को जमीन पर रखेंगे और फिर कमर को धीरे-से जमीन पर टिकायेंगे।
शवासन। शृँखला के मध्यान्तर के रुप में हम शवासन करेंगे। शव यानि मृत। पीठ के बल शान्त लेट जायेंगे- आँखें बन्द, हथेलियाँ ऊपर की ओर- और यह महसूस करेंगे कि हमारा शरीर बादलों के बीच तैर रहा है (छायाचित्र-13)। शवासन के दौरान हमारे शरीर में रक्त का वितरण एक समान हो जायेगा, इससे जब हम अगला आसन- सर्वांगासन- करेंगे, तब चेहरे पर रक्त का दवाब सामान्य रहेगा।
सर्वांगासन। जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह सभी अंगों का आसन है। जब कभी समय की कमी हो, सिर्फ इसी आसन को (तीन या पाँच मिनट के लिए) करना चाहिए। इसे आप “मास्टर” आसन कह सकते हैं- यानि सभी आसनों की कुँजी! कहते हैं कि इस आसन के अभ्यास से “वलितम्-पलितम्-गलितम्” (अर्थात् झुर्रियाँ पड़ना, बाल झड़ना, कोशिकाओं का क्षय- वार्धक्य के तीनों लक्षणों) को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। दूसरी बात, हमारे रक्त में जो ऑक्सीजन घुला रहता है, उसके ज्यादातर अंश का इस्तेमाल हमारा मस्तिष्क करता है; जबकि हृदय से मस्तिष्क की ओर रक्त की पम्पिंग स्वाभाविक रुप से कमजोर होती है। ऐसे में, मिनट भर के लिए भी मस्तिष्क को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुँचाने का यह बढ़िया जरिया है। तीसरी बात, पेट की आँतें भी मिनट भर के लिए दवाब से मुक्त हो जाती हैं।
लेकिन कभी कसरत/योगाभ्यास जिन्होंने नहीं किया है, वे दो-तीन महीने इसका अभ्यास न करें, बाद में दो-तीन महीने ‘विपरीतकरणी मुद्रा’ (छायाचित्र-16) का अभ्यास करें और उसके बाद ही सर्वांगासन करें।
खैर। सर्वांगासन एक झटके में न कर हम पाँच चरणों में करेंगे।
पहला चरण शवासन है, जो हमने कर लिया।
दूसरे चरण में दोनों पैरों को जमीन से थोड़ा-सा (15-20 डिग्री) ऊपर उठायेंगे और 30 गिनने तक रुकेंगे (छायाचित्र-14)।
तीसरे चरण में पैरों को थोड़ा और ऊपर (90 डिग्री से कुछ कम) ले जायेंगे और वहाँ भी 30 गिनने तक रुकेंगे (छायाचित्र-15)।
चौथे चरण में कमर को हाथों का सहारा देते हुए पैरों को सर के आगे ले जायेंगे- चित्र से बेहतर समझ में आयेगा (छायाचित्र-16)। यही मुद्रा “विपरीतकरणी मुद्रा” है। यहाँ भी 30 गिनने तक रुकेंगे।
अब पाँचवे और अन्तिम चरण में पैरों को सीधा आकाश की ओर कर लेंगे- कमर सीधी, शरीर का वजन कन्धों तथा सर के पिछले हिस्से पर। कमर को हाथों का सहारा जारी रहेगा (छायाचित्र-17)।
आसन से लौटते समय पहले विपरीतकरणी मुद्रा में आयेंगे, फिर दूसरे और तीसरे चरण में, और फिर अन्त में पैरों को धीरे-से जमीन पर रखकर कुछ सेकेण्ड सुस्तायेंगे।
मत्स्यासन। मत्स्य यानि मछली। अब हम जो भी योगाभ्यास करेंगे, उसके लिए “पद्मासन” जरूरी है। यहाँ यह मान लिया जा रहा है कि भारतीय होने के नाते आप जानते हैं कि पद्मासन में कैसे बैठते हैं। अभ्यास नहीं है, तो धीरे-धीरे अभ्यास करना पड़ेगा।
खैर, पद्मासन में बैठने के बाद हम धीरे-धीरे पीछे की ओर लेटेंगे। लेटते समय जरा-सा तिरछा होकर पहले एक केहुनी को जमीन पर टिकायेंगे (छायाचित्र-18), फिर दूसरी केहुनी को और फिर, सर को जमीन से टिका लेंगे। सर टिक जाने के बाद हाथों को जाँघों पर रख सकते हैं (छायाचित्र-19)। आसन से लौटते समय भी केहुनियों का सहारा लेंगे। सर्वांगासन में गर्दन की जो स्थिति बनती है, उसकी उल्टी स्थिति इस आसन में बनती है; इसलिए मत्स्यासन को सर्वांगासन के बाद किया जाता है।
प्रणामासन। इसमें पद्मासन में बैठे-बैठे आगे की ओर झुकना है। हथेलियों को प्रणाम की स्थिति में लाकर जमीन पर रखकर धीरे-धीरे आगे की ओर खिसकाते जायेंगे- जब तक कि सर जमीन से न सट जाय (छायाचित्र-20)।
तुलासन। तुला माने तराजू। पद्मासन में रहते हुए दोनों हाथों को दोनों तरफ जमीन पर रखेंगे और फिर हाथों पर शरीर का वजन डालते हुए शरीर को हवा में उठा लेंगे (छायाचित्र-21)। शुरु-शुरु में 30-30 (या सुविधानुसार इससे कम) की गिनती के साथ इसे तीन (या इससे अधिक) बार करेंगे, बाद में सध जाने पर सौ गिनने तक इस मुद्रा में रह सकते हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम। यह एक जाहिर-सी बात है कि हम आम तौर पर जिस तरीके से साँस लेते हैं, उससे फेफड़ों के पूरे आयतन में हवा नहीं भरती। हाँ, दौड़ने/जॉगिंग या कसरत करने के क्रम में फेफड़ों में पूरी हवा भरती है। फिर भी, इस प्राणायाम का अपना अलग महत्व है, क्योंकि इसमें साँस गहरी होती है।
पद्मासन में बैठकर तर्जनी और मध्यमा उँगलियों को भ्रूमध्य (दोनों भौंहों के बीच) पर रखेंगे। अगर यह हाथ दाहिना है, तो अँगूठा दाहिनी नासिका की ओर तथा अनामिका (उँगली) बाँयी नासिका की ओर रहेगी।
पहले अँगूठे से दाहिनी नासिका को बन्द कर (छायाचित्र-22) बाँयी नासिका से गहरी साँस लेंगे और अनामिका से बाँयी नासिका को बन्द कर (छायाचित्र-23) दाहिनी नासिका से अँगूठे को हटाकर साँस बाहर निकाल देंगे।
अगली बार दाहिनी नासिका से गहरी साँस लेकर बाँयी नासिका से साँस निकालेंगे।
यह क्रम चलता रहेगा। साँस लेते समय फेफड़ों को फुलाने की कोशिश करेंगे और साँस छोड़ते समय पेट को थोड़ा-सा पिचका लेंगे। इस प्राणायाम के लिए कुल चार मिनट का समय निर्धारित है- मगर घड़ी देखने के बजाय हम गिनकर 12 बार गहरी साँस भरेंगे और छोड़ेंगे।
ध्यान। पद्मासन में ही मेरूदण्ड बिलकुल सीधी कर हम बैठेंगे। दोनों हाथ घुटनों पर- हथेलियाँ ऊपर की ओर। अगर हम तर्जनी उँगलियों को अँगूठों की जड़ पर रखते हुए मध्यमा को जमीन से सटा लें, तो यह ‘ज्ञानमुद्रा’ बन जायेगी (छायाचित्र-24)।
आँखें बन्द कर हम यह कल्पना करेंगे कि हमारे शरीर की सारी ऊर्जा घनीभूत होकर मेरूदण्ड की निचली छोर पर जमा हो रही है। इस स्थिति में लगभग 10 तक गिनेंगे। इसके बाद अनुभव करेंगे कि घनीभूत ऊर्जा की वह गेन्द नाभि पर आ गयी है। यहाँ भी दस की गिनती तक रुकेंगे। इसके बाद ऊर्जा-पुँज हृदय में और फिर भ्रूमध्य (दोनों भौंहों के बीच) में आकर रुकेगी। बेशक, दोनों जगह दस-दस तक गिनेंगे। अन्त में, हम यह अनुभव करेंगे कि यह ऊर्जा हमारी माथे के ऊपर से निकल कर अनन्त ब्रह्माण्ड से मिल रही है।
इस प्रकार, ध्यान की यह प्रक्रिया एक मिनट की है। (आज के जमाने के हिसाब से यही बहुत है!) सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि ध्यान बीच में न टूटे- अर्थात् ऊर्जा-पुँज (काल्पनिक ही सही) शरीर के बीच में ही कहीं छूट न जाये। दूसरे शब्दों में, ‘मूलाधार चक्र’ से शुरु हुई ऊर्जा की इस यात्रा को ‘सहस्स्रार चक्र’ से बाहर भेजकर पूर्ण करना ही है।
आशा की जानी चाहिए कि ध्यान हमारी मानसिक क्षमताओं को बढ़ायेगा।
*
उपसंहार
इस प्रकार, रात में आधा घण्टा पहले सोकर और सुबह आधा घण्टा पहले जागकर लगभग 20 मिनट समय खर्च कर हम न केवल अपने शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं।
Tuesday, September 1, 2015
gout
Health pack for gout
Gout is a kind of arthritis in which uric acid and proteins gets deposited in the joint severe pain and if untreated leads to deformed joints also. It sometimes is also fatal as excess of uric acid and proteins may lead to kidney failure. Disease generally starts with a severe pain in the big toe that may fade away immediately.
Symptoms of gout
- Warm, painful and swelled joints
- The affected joint is very painful to touch
- Disease generally starts with a severe pain in the big toe that may fade away immediately.
- Pain generally comes in night time
- Skin may become very hot and red to purple in color
- Movements may become restricted
- Itching is followed by peeling of skin when the condition of joint condition is improving
- Divya Peedantak Kwath – Divya peedantak kwath from the house of baba ramdev has been an effective remedy to get rid of joint pains. It is helpful in rectifying the blood circulation in the joint providing it the nutrition and drainage. It is also helpful in reducing the burning sensation. It is regarded as a good remedy for treating gout.
- Divya Swarnmakshik Bhasam – divya swarn makshik bhasam is another wonderful herbal supplement that helps in reducing the pain and agony of the joint. It helps in reducing the joint swelling and restores blood circulation in the joint.
- Divya Maha vata Vidhwansan ras – This is a classical herbal medicine in ayurveda that helps in relieving from any kind of arthritis pain. It also helps in restoring the joint movement and helps in getting away from deformity.
- Praval pishti – Divya Praval pishiti from the house of baba ramdev is an effective solution in supplying calcium in the body. It is also helpful reducing the inflammation and heat from the body. It is also helpful in controlling uric acid hence decreases probability of gout.
- Divya Giloy Sat – Divya Giloy sat is considered as a magical ayurvedic herb that is helpful in reducing uric acid from the body. It is an herbal supplement that is helpful in boosting the immunity of the body.
- Brihat vata chintamani ras – Divya Vrihat vat Chintamani ras is an herbal supplement mentioned in classical ayurvedic texts. It is an effective herbal combination that helps in relieving from severe pains and swellings caused due to arthritis. It is an effective solution of gout.
- Divya Yograj gulgullu – Divya Yograj guggulu is a wonderful herbal supplement that is effective in reducing pains and swellings caused due to arthritis. It is a medicine of choice in ayurveda for gout, rheumatoid arthritis, and osteoarthritis.
- Divya chandrapraha vati – Divya Chandraprabha vati is an herb that helps in rectifying all the deformity in the body. It helps in achieving detoxification and hence is required to eliminate the increased uric acid in the body. It is also helpful in curing all forms of urinary tract problems.
- Divya punarnavadi mandoor – Puarnavdi mandoor is helpful in supplying energy in the body and is also helpful in reducing the inflammation. It is also helpful in supplementing the body with new zeal and energy.
Divya Peedantak Kwath is an herbal tea for gout condition. Take 2 tea spoon of the mixture and boil it in 1 glass of water. Now when the water is left half add sugar or milk as per your taste and consume two times a day.
Mix ingredients 2 to 9 in a grinder and grind it to make out powder out of it. Consume 3/4th of a tea spoon two times a day with water
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